विचार परक
बस्ती , रूधौली के पूर्व विधायक संजय प्रताप जायसवाल ने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर कहा है कि मनरेगा परियोजनाओं के भुगतान का अधिकार संबंधित ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान के पास सुरक्षित किया जाय। पूर्व विधायक के पत्र को गंभीरता से लेते हुये प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री संजय प्रसाद ने अपर मुख्य सचिव ग्राम्य विकास को निर्देश दिया है कि परीक्षणोपरान्त समुचित कार्यवाही की जाय।
भेजे पत्र में पूर्व विधायक संजय प्रताप जायसवाल ने कहा है कि सरकार की श्रमिको के लिए अति महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा, जिसके माध्यम से ग्राम पंचायत के श्रमिको को गांब में ही 100 दिन का रोजगार मुहैया कराये जाने के उद्देश्य से संचालित किया जा रहा है, उक्त परियोजना के भुगतान में बीडीओ का हस्तक्षेप सरकार की जीरो टारलेन्स की नीति को प्रभावित कर रहा है। उन्होने पत्र में कहा है कि मनरेगा भुगतान व फाइल स्वीकृत करने का अधिकार संबंधित विकास खण्ड के बीडीओ के पास होने से प्रधान व सचिव पर दबाव डालकर मनरेगा परियोजनाओं पर कार्यालय क्षेत्र पंचायत द्वारा कमीशनखोरी व परियोजनाओं के अपूर्ण तथा गाइडलाइन के उल्लंघन का मामला अक्सर चर्चा में रहता है। सीआईबी बोर्ड साइट पर उपलब्ध न होने के बावजूद क्षेत्र पंचायत द्वारा कमीशन लेकर परियोजनाओं का भुगतान हो जाता है। मानक विहीन एवं गुणवत्ता विहीन कार्यों की बिना जांच कराये ही मनमाना भुगतान कर दिया जाता है। मनरेगा अधिनियम में 264 परियोजनाएं है, जबकि ग्राम पंचायत कुछ ही परियोजना पर कार्य कर रही है। . बीडीओ के करीबी ग्राम प्रधानों द्वारा 60.40 के अनुपात का अनुपालन दर किरान करके मनमाने तरीके से कार्य कराकर भुगतान करा लेते है। मनरेगा का भुगतान जब से बीडीओ के अधिकार में आया तब से ग्राम पंचायत के कार्य का अनुपात घट गया है। जिसका कारण कमीशनखोरी तथा कार्य की गड़बड़ी होने पर ग्राम प्रधानों से रिकवरी का है। जिन विकास खण्डो में 6 करोड़ से ऊपर का कार्य होता था वहां अब केवल 40 से 50 लाख तक का कार्य ही कराया जा रहा है।
पत्र में पूर्व विधायक ने कहा है कि ग्राम पंचायत में पुलिया निर्माण की भी स्वीकृति बीडीओ के हाथ है, फाइल स्वीकृत, बाउचर फीड, मस्टररोल, पेमेन्ट लगवाने आदि हर स्तर पर क्षेत्र पंचायत के एनआरईपी बाबू तथा बीडीओ को तय कमीशन देना पड़ता है, जिससे एक तरफ जहां ग्राम प्रधानों का शोषण हो रहा है तो वही ग्राम पंचायत का विकास कार्य भी बाधित होता है। जिसका निराकरण किया जाना जनहित में नितान्त आवश्यक है। उन्होने मांग किया कि जिस प्रकार से मनरेगा के अतिरिक्त ग्राम पंचायत के अन्य भुगतान को डोंगल के माध्यम से सहखातेदार के साथ ग्राम प्रधान सफलता पूर्वक कर रहे है, उसी प्रकार से मनरेगा के भुगतान का अधिकार संबंधित ग्राम पंचायतो के ग्राम प्रधानों को सुरक्षित किया जाय। जिससे सरकार की जीरो टारलेन्स की नीति सफल हो तथा ग्राम पंचायतों का व्यापक विकास हो सके।