जानिए क्यों होती है आज के दिन वट वृक्ष की पूजा

बस्ती , मंडल के तीनों जिलों में वट सावित्री व्रत का त्यौहार सुहागिन महिलाओं वटवृक्ष की पूजा करके धूमधाम से मनाया जा रहा।
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बस्ती, सिद्धार्थनगर तथा संत कबीर नगर जिलों के कई गावों में वट सावित्री व्रत का त्यौहार मेले का स्वरूप जैसा दिखाई दे रहा है।

वट सावित्री व्रत के बारे में सनातन धर्म की जानकारी पंडित विशाल पाण्डेय ने गुरुवार को यहां यह जानकारी देते हुए बताया है कि 06 जून 2024 को वट सावित्री व्रत का त्योहार है। हर वर्ष सुहागन महिलाओं द्वारा ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है।
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इस व्रत को रखने के लिए सभी लोग पहले से ही तैयारी करते हैं उत्साहपूर्वक इस व्रत को रखकर बरगद के पेड़ को पूजते हैं। ऐसी मान्यता है कि वटवृक्ष की जडों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान है एवं इस वृक्ष की लटकती हुई शिराओं में देवी सावित्री का निवास है। अक्षयवट के पत्र पर प्रलय के अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने मार्कण्डेय को दर्शन दिए थे। प्रयाग में गंगा के तट पर अक्षयवट है। तुलसीदास जी ने इस अक्षयवट को तीर्थराज का छत्र कहा है। तीर्थो में पंचवटी का महत्व है। पांच वटों से युक्त स्थान को पंचवटी कहा गया है। मुनि अगस्त्य के परामर्श से श्री राम ने सीता व लक्ष्मण के साथ वनवास काल में यहां निवास किया था।
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अश्विन मास में भगवान विष्णु की नाभि से कमल प्रकट हुआ, तब अन्य देवों से भी विभिन्न वृक्ष उत्पन्न हुए। उसी समय यक्षों के राजा ’मणिभद्र’से वट का वृक्ष उत्पन्न हुआ। अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्वर माना जाता है इसीलिए महिलाएं पति की दीर्घायु और परिवार की समृद्वि के लिए यह व्रत रखती है। वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था तब से यह व्रत ’वट सावित्री’के नाम से जाना जाता है।पंडा, फल्गु नदी, गाय और केतकी फूल ने झूठ बोल दिया परंतु वट वृक्ष ने सब सच-सच बता दिया। तभी माता सीता ने फल्गु नदी, गाय, पंडा तथा केतकी फूल को श्राप दे दिया। वहीं वटवृक्ष को अक्षय रहने का आर्शीवाद दे दिया। इसी वृक्ष के नीचे देवी सावित्री ने अपने सुहाग को फिर से प्राप्त किया। यही कारण है कि महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं तो उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है,परिवार पर किसी प्रकार का कोई संकट नहीं आता। वट वृक्ष की नियमित पूजा करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्कंद पुराण के अनुसार इस वृक्ष की पूजा यदि सुबह-शाम की जाए तो दांपत्य जीवन सुखद बनता है,सभी कष्ट दूर हो जाते हैं एवं मनुष्य निरोगी रहता है।
नेक धर्मग्रंथों के अनुसार मां सीता के आशीर्वाद से बरगद के वृक्ष की महिमा विख्यात हो गई।
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मान्यता है कि त्रेतायुग में वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ गया में श्राद्धकर्म के लिए आए थे। इसके बाद श्रीराम और लक्ष्मण श्राद्ध कर्म के लिए सामान लेने चले गए।  इतने में राजा दशरथ प्रकट हो गए और सीता को ही पिंडदान करने के लिए कहकर मोक्ष दिलाने का निर्देश दिया। माता सीता ने पंडा, फल्गु नदी, गाय, वटवृक्ष और केतकी के फूल को साक्षी मानकर पिंडदान कर दिया। जब भगवान राम आए तो माता सीता ने उन्हें पूरी बात बताई, परंतु श्रीराम को विश्वास नहीं हुआ। तब माता सीता ने जिन्हें साक्षी मानकर पिंडदान किया था उन सबको वह अपने स्वामी श्रीराम के सामने लायीं।

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